आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे जादुई जैविक समाधान की जो आपके खेतों में क्रांति ला सकता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं माइकोराइजा की, जो खरीफ की फसलों जैसे मक्का, धान, सोयाबीन और मूंगफली में जड़ विकास, जबरदस्त हरियाली और शानदार ग्रोथ के लिए वरदान साबित हो रहा है। दोस्तों, जिन किसानों ने इसे अपनाया है उन्हें पैदावार में चमत्कारी बढ़ोतरी देखने को मिली है और मिट्टी की सेहत भी पहले से कहीं ज्यादा सुधरी है।
माइकोराइजा: मिट्टी में छुपा हुआ जैविक खजाना
दोस्तों, सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि माइकोराइजा कोई खाद या रासायनिक उर्वरक नहीं है बल्कि यह एक मित्र फंगस होता है जो पौधों की जड़ों से जुड़कर मिट्टी में मौजूद फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक, बोरॉन और अन्य पोषक तत्वों को घोलकर पौधों तक पहुंचाता है। जहां सामान्य जड़ें एक सीमित क्षेत्र से पोषण ले पाती हैं, वहीं माइकोराइजा की फाइबर जैसी संरचना दो गुना दूरी तक पोषण सोखने में मदद करती है। यही कारण है कि मक्के या धान जैसी फसलों में जड़ें बहुत मजबूत बनती हैं और फसल अधिक हरियाली और ताकत के साथ तैयार होती है।
पौधों में जान फूंक देता है माइकोराइजा
दोस्तों, जब पौधों की जड़ें गहराई तक फैलती हैं और मिट्टी से भरपूर पोषक तत्व मिलने लगते हैं, तब पौधे न सिर्फ ऊंचे होते हैं बल्कि उनकी पत्तियों का रंग भी गहरा हरा होता है। क्लोरोफिल की मात्रा बढ़ती है जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तेज होती है। यही कारण है कि माइकोराइजा के उपयोग से फुटाव अधिक होते हैं, तना मजबूत बनता है और फसलों में जो दानों की गुणवत्ता होती है वो जबरदस्त रूप से सुधरती है। आप खुद देखेंगे कि फसल में सफेद रेशेदार जड़ों का घना जाल तैयार हो जाएगा, जो पैदावार बढ़ाने की सबसे मजबूत नींव है।
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माइकोराइजा का सही रूप और सही मात्रा
माइकोराइजा मुख्य रूप से तीन फॉर्म में आता है – ग्रेन्यूल्स, पाउडर और जेल। लेकिन सबसे ज़्यादा इस्तेमाल ग्रेन्यूल्स और पाउडर का होता है। यदि आप ड्रिप सिस्टम से खेती करते हैं तो पाउडर फार्म सबसे उपयुक्त है और यदि आप पारंपरिक विधि से खेतों में खाद डालते हैं तो ग्रेन्यूल्स वाला माइकोराइजा एकदम सही रहेगा। डोज़ की बात करें तो एक एकड़ में 4 किलो ग्रेन्यूल्स फार्म पर्याप्त होता है। कुछ टॉप ब्रांड्स जैसे टाटा रेलीगोल्ड, केमक्स सुपर, मायकोर, एचपीएम गोल्ड आदि बहुत बेहतरीन परिणाम देते हैं। दोस्तों, इन उत्पादों में कई बार ह्यूमिक एसिड, सीवीड और अमीनो एसिड भी मिल जाते हैं जो जड़ों को और अधिक पोषण देने का काम करते हैं।
माइकोराइजा कब और कैसे डालना है
दोस्तों, बहुत से किसान बुवाई के समय माइकोराइजा डालते हैं लेकिन सही अवधि मानी जाती है 25 से 45 दिन के बीच। इस समय पौधे की जड़ों का विकास अपने चरम पर होता है और पोषक तत्वों की सबसे अधिक मांग रहती है। ऐसे में यदि आप माइकोराइजा दे देते हैं तो उसका असर तुरंत दिखने लगता है। ध्यान देने की बात यह है कि माइकोराइजा को कभी भी क्लोरोपायरीफॉस, कार्बोफ्यूरॉन या अन्य रासायनिक कीटनाशकों के साथ न मिलाएं। इसे यूरिया के साथ मिलाया जा सकता है लेकिन कीटनाशकों के साथ नहीं।

माइकोराइजा के फायदे ही फायदे हैं
इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह मिट्टी में पड़े हुए फॉस्फोरस और पोटाश जैसे तत्वों को घोलकर पौधों तक पहुंचा देता है। इससे आपकी रासायनिक खादों की जरूरत भी कम हो जाती है। यह जड़ों को मजबूत करता है, पत्तियों में हरियाली बढ़ाता है, पौधों में फुटाव को प्रोत्साहित करता है, फलों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में बढ़ोतरी करता है और कुल मिलाकर पैदावार को कई गुना तक बढ़ा सकता है।
लागत कम, मुनाफा ज्यादा
एक एकड़ में माइकोराइजा का खर्च 500 से 650 रुपए के बीच आता है और इसका असर देख कर आप खुद कहेंगे कि इतनी कम कीमत में इतना बड़ा फायदा और कहीं नहीं मिल सकता। दोस्तों, अगर आप जैविक खेती कर रहे हैं तो भी यह बेहतरीन काम करता है और अगर रासायनिक खेती कर रहे हैं तो भी यह आपको खाद पर निर्भरता कम करने में मदद करता है।
अगली बार जब आप मक्का, धान, सोयाबीन, मूंगफली या कोई भी खरीफ फसल लगाएं तो माइकोराइजा को जरूर याद रखें। यह आपकी मिट्टी को जीवित बनाएगा, पौधों को ताकत देगा और आपकी पैदावार को कई गुना बढ़ा देगा। बस ध्यान इतना रखें कि इसे सही समय, सही मात्रा और सही तरीके से प्रयोग करें। खेती अब समझदारी की मांग करती है और माइकोराइजा एक ऐसा जैविक साथी है जो आपके खेतों की किस्मत बदल सकता है।